कविता

चलो खुलकर मुस्कुराते हैं

मुस्कुरा लो यार तलब न दबाओ,
हर एक क्षण खुश नजर आओ,
इसके फायदे एक नहीं अनेक है,
महत्व इसका बहुत ही विशेष है,
सोचो हमने कब कब मुस्कुराया है,
हमें हर पल उन्होंने सिर्फ जलाया है,
पर हम निराश नहीं हैं,
उदास भी नहीं हैं,
क्योंकि उपलब्धि की वो कील
मेरे बाप ने ठोंके है,
विषमताओं का प्रवाह सिर्फ उसने रोके है,
वरना मुस्कुराने के पहले गिड़गिड़ाना होता था,
हर देहरी पर सर झुकाना होता था,
बाबा साहेब ने हर मिथक तोड़ा,
अपने पैरों पर खड़ा कर हमें छोड़ा,
हम अब शिक्षा की अलख जगा रहे हैं,
इत्मीनान से यदि मुस्कुरा रहे हैं,
तो इसका कारण सिर्फ बाबा भीमराव है,
स्वतंत्र अस्तित्व की ओर जिनका झुकाव है,
पुरखों का अहसास सोच भी सिहर जाते हैं,
हर पग की कठिनाइयां जो बताते हैं,
तो चलो खुलकर मुस्कुराते हैं,
हमारी हंसी से जलने वालों को जलाते हैं।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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