गीत – रावण को जिंदा रखना है
रावण को जिंदा रखना है
फिर अगले साल जलाने को।
रहने हैं अत्याचार सभी
व्यभिचार बंद मत करना तुम।
मत बलात्कार भी बंद करो
अलगाववाद नाचे छुम – छुम।।
वे पात्र खोजते रहना है
जनता को नित्य सताने को।
रावण यदि होता नहीं यहाँ
रामों की पूछ नहीं होती।
कुचले बिन सीपी का अंतर
मिलते न हमें सुथरे मोती।।
रावण ही रावण जला रहे
सत्तासन को हथियाने को।
घर -घर रावण दर-दर रावण
मत राम-लखन को खोज यहाँ।
रामत्व नाम तो नारा है
मत त्रेता ढूँढ़ें यहाँ – वहाँ।।
सीताओं में सत शेष कहाँ
सासें घर में लतियाने को।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’