राजनीति

भारत- समस्याएं और समाधान

देखें तो समस्याएं ही समस्याएं हैं किंतु मूल कारण एक ही समझ आता है कि भारत के नागरिक अपनी मूल संस्कृति से कट गए हैं . एक पशो पेश की स्थिति में हैं कभी पूर्ण भारतीय कहलाना चाहते हैं कभी पाश्चात्य संस्कृति को ओढ़ने की दौड़ में नज़र आते हैं। अपनी संस्कृति से कटा व्यक्ति जड़ से कटे वृक्ष की भांति होता है जिसमें संतुलन नहीं, स्वाभिमान नहीं, विश्वास नहीं। आत्मविश्वास की कमी के कारण वह अपनी ज़मीन तलाशने में व्यस्त रहता है आगे की सोचना तो उसके पाठ्यक्रम में ही नहीं रह जाता। विज़न या दूरदृष्टि का पूर्णतयः अभाव उसके वृत (circle of perception, thoughts and activities) को लघु करता है और वह अपने सुख- दुःख में ही डूबा है। ख़ुद से बाहर निकले तो बाहर(अन्य) के बारे में सोचे और उस दिशा में प्रयास करे। नैतिक मूल्यों का ह्रास , मातृ भाषा इत्यादि के लिये सम्मान की कमी सभी सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक समस्याओं में रूपांतरित होती दिखाई देती है और वसुधैव कुटुम्बकम वाली भारतीय सोच जिसमें व्यक्ति पहले विश्व, फिर देश , राज्य,समाज, परिवार और अंत में अपने बारे में सोचता था वह कहाँ रहेगी। तो जो भी प्रयास आरम्भ हुए हैं या होने चाहिए वे भारतीय संस्कृति से जुड़ने, उसे स-शक्त करने और उसके प्रसार के होने चाहिए। सही दिशा में बढ़ेंगे तो मंज़िल पा ही जायेंगे।

— डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]

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