हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : बाबा सिद्दीक़ी का मर्सिया

हाय बाबा सिद्दीक़ी !

तुम कहाँ चले गये ! इतनी जल्दी कैसे चले गये ? अभी तो तुमने केवल पैंसठ बसन्त देखे थे। जवानी भी नहीं गुजरी थी। भरी जवानी में ही सारे कटासुर समाज को अनाथ करके चले गये ! सारे खबरंडी तुम्हारी याद में गमगीन हैं। सब आठ-आठ आँसू बहा रहे हैं और कई तो धाड़ें मार-मारकर रो रहे हैं। अब उन पत्तलकारों को बालीवुड की पत्तल कौन चटाएगा?

वो दिन याद आते हैं जब तुम्हारा जलवा था। तुम दारूद भाई और बालीवुड का बीच की अहम कड़ी थे। तुम्हारी इच्छा के बिना बालीवुड में पत्ता भी नहीं खड़कता था। तुम ही तय करते और कराते थे कि किसको फ़िल्मों में काम मिलेगा, किसको नहीं और कौन किस फ़िल्म में काम करेगा। जिस किसी ने इसमें जरा भी चूँ-चपड़ की, उसी को बालीवुड से इस तरह निकाल फेंका, जैसे दूध में मक्खी।

तुम दुबई में होनेवाली पार्टियों की जान थे। दारूद भाई का फ़रमान पाकर तुम्हारे कहने से सभी बालीवुडी नचकैये सारे काम छोड़कर दुबई भागते थे और वहाँ अपनी नाज़ुक कमर को मटकाते थे। हकला-टकला, सल्लू-कल्लू सभी भाँड़ और भाँड़नी वहाँ पाये जाते थे। लेकिन अब सब ठप्प हो गया।

राजनीति में भी तुम्हारी तूती बोलती थी। सभी पार्टियाँ तुम्हें अपना मानती थीं। तुम कई बार चुनाव जीते थे और अनेक नेता और अफ़सर तुम्हारी जेब में रखे रहते थे। इसीलिए तुम्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा दी गयी थी। दर्जनों पुलिसवाले आगे-पीछे अगल-बगल से तुम्हारी रक्षा करते थे। पर हाय री क़िस्मत ! तीन नौसिखिए लड़कों ने आकर आसानी से तुम्हारे सीने में गोलियाँ उतार दीं। सारी सुरक्षा रखी रह गयी।

तुम्हारा यह हश्र देखकर सारे बालीवुड को साँप सूँघ गया है। अब तक टाइगर बना घूम रहा सूअर अब पिल्ले की तरह अपनी माँद में घुस गया है। दूसरे सूअरों का भी यही हाल है। जिन्होंने काले हिरण का स्वाद लिया था, उनकी ख़ासतौर से फटी पड़ी है।

ऐ बाबा सिद्दीक़ी! दल्लाह तुम्हें जन्नत बख्शे और बहत्तर की जगह पचहत्तर हूरें अता फ़रमाये। सारा कटासुर समाज तुम्हारे लिए दुआ कर रहा है।

आमीन ! पिल्ला हू शूकर !

— बीजू ब्रजवासी

कार्तिक कृ. ६, सं. २०८१ वि. (२३ अक्टूबर, २०२४)

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