कविता

झील

जामुन का वह पेड़
और वह झील का किनारा
पेड़ के नीचे बैठे गुरुजी
और हम रटते थे पहाड़ा।
प्रकृति की सुरम्य गोद में
हमारी लगती थी कक्षाएँ,
बहुत से पाठ सीख जाते,
बिना शिक्षक के सिखाए।
पिता सम जामुन का वह पेड़,
हवा का स्पर्श पाकर,
कुछ ऐसे झूम जाता था
हम नन्हे बच्चों की खातिर
वह तमाम जामुन गिराता था ।
पहले गुरु जी का जाना
दूसरे शिक्षक का आना
मध्यांतर में जामुन बीनना
और मध्य कक्षा में खाना
कुछ बच्चों को ललचाना
कुछ सहपाठियों को चिढ़ाना ।
जामुन की गुठलियों को
झील में डाल जाना ।
जो नन्हे कछुओं का बनती भोजन
हमारा मछलियों को बुलाना ।
ओ झील ! तुम कितनी सुंदर थी ,
यह अब मैंने है जाना।।

— बृजबाला दौलतानी