गीतिका/ग़ज़ल

लिख दुँ

सोचता हूँ उनके नाम एक रुबाई लिख दुँ,
अपनी जिंदगी भर की ये कमाई लिख दुँ।

लिख दुँ मैं कैसे हुई थी पहली मुलाकात,
प्यार के परवान चढ़ने की चढ़ाई लिख दुँ।

जमाने से छिप छिप कर हर रोज मिलना,
किताबों में दिए खतों की लिखाई लिख दुँ।

वो नदी का किनारा, वो बगीचे के फूल,
उसके संग गुजारे लम्हों की लंबाई लिख दुँ।

वो तिरछी नजरों से देख कर मुस्कुराना,
चेहरे पर वो जुल्फों की लटकाई लिख दुँ।

सोचता हूँ लिख दुँ वो बहाने से पास बुलाना,
ना जाने पर होती थी जो वो लड़ाई लिख दुँ।

फिर अचानक से उसका यूँ बदल जाना,
जाते जाते दी भूल जाने की दुहाई लिख दुँ।

सामने आने पर नजरें आज भी मिलाती है,
दिल में है प्यार उसके ये सच्चाई लिख दुँ।

ना उसने दगा किया, ना विकास ने जफ़ा की,
जुदाई की वजह वक़्त की बेवफाई लिख दुँ।

— विकास शर्मा

डॉ, विकास शर्मा

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