गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़मीं वफाओं की ताज़ातरीन देखनी है
तुम्हारे साथ ये दुनिया हसीन देखनी है

कि देख ली है सियासत तो हमने साँपों की
सियासी लोगों की अब आस्तीन देखनी है

मुबारक आपको हो मलमली अदाकारी
हमें तो अपने लिए मारकीन देखनी है

खज़ाना खूब है दिल को मगर सुकून नहीं
ये दुनिया आगे हमें सारहीन देखनी है

जिसे सहेज के रखा था दिल के कोने में
नदी वो रिश्तों की अब भावहीन देखनी है

सुना रिसाले में उनका कलाम आया है
मुझे किसी भी तरह मैगजीन देखनी है

— ओम निश्चल

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