कहानी

कहानी – उसकी दिवाली

सुखिया कुम्हारिन अपने बनाये माटी के दियों के संग बैठी बाजार में चिल्ला रही थी।”दस रुपए के दस दिये ले लो।”
दीपावली की रौनक पूरे बाजार में दिखाई दे रही थी।बिजली के दियों की दुकानों में सबसे ज्यादा भीड़ थी। दोपहर हो चली थी।सुखिया का अभी तक एक भी माटी का दिया नहीं बिका था। वह उदास सी बैठी सोच रही थी कि इस बार उसने सोचा था कि यह माटी का दिया अच्छा बिक जाएगा तो वह अपने पोते-पोतियों के लिए नए कपड़े और मिठाई खरीदेगी।बहू के लिए नई साड़ी लेगी ।जब से उसके घर बहू आई है कभी नई साड़ी उसे नसीब नहीं हुई है।हमेशा उसके मायके में तीज-त्योहार में दिए जाने वाली
साड़ियां पहनती आई है। उसके सोच का क्रम टूटा।कोई
महिला पूछ रही थी-“कितने के दिये ये मिट्टी के दीपक?”
उसने कहा-“दस रुपए के दस दीपक।ले लो मैडम जी, बहुत सस्ता है।”
“अरे, सस्ता कहाँ है?तुम लोगों ने तो लूट मचा रखी है।मिट्टी के दीपक का इतना भाव?”
“क्या बताये मैडम जी,इसे बनाने में हमें कितनी मेहनत करनी पड़ती है।वह भी तो देखो।’
उस महिला ने दस रुपए के दिये ले लिए। सुखिया को संतोष हुआ कि चलो बोहनी तो हुई है।
तभी एक और महिला आई ।उसने भी दियों का भाव पूछा ।भाव सुनकर वह बोली-“हुंह इस जमाने मे कौन इन माटी के दियो को खरीदेगा ।अब तो एक से बढ़कर एक बिजली के दिये बाजार में मिल जाते हैं।फिर इन दियों को जलाने का तेल भी तो बहुत महंगा हो गया है । मुझे तो दो रुपए का दीपक दे दो नेग के लिए जला लुंगी।”
उसने दो रुपए के दीपक लिए और चली गई। सुखिया फिर उदास हो गई।उसे लगा कि इस दिवाली भी उसका सूखा ही बीत जाएगा।उसने सोचा था कि इस दिवाली वह भी खीर पूड़ी बच्चों के लिए जरूर बनाएगी पर ये क्या ?सच अब माटी के दियों का कोई मोल नहीं है।सारे कुम्हार क्या भूखे मर जायेंगे। तभी उसकी दुकान पर एक युवती आई ।उसने उसके दियों का भाव पूछा और कहा कि -“अम्मा जी, मैं यहीं पास कि दुकान में खड़ी आपको देख रही हूं।आप काफी निराश लग रही हैं।”
“क्या बताऊँ बिटिया आज का पूरा दिन कुछ खास कमाई नहीं हुई है।अब माटी के दियों का कोई मोल नहीं रह गया है।पहले जमाने के लोग इसे पवित्र मानते थे ।यही दीपक भगवान के पास और देहरी में जलाते थे।पर अब तो इसे खरीदने कोई ग्राहक नहीं मिल रहे हैं।मेरी सारी मेहनत धरी की धरी रह गई।हमारी दीवाली भी नहीं मनेगी।”
“नहींअम्मा जी,आप निराश न होवें।मुझे ये सारे दिये दे दीजिए।मैं पर्यावरण एन जी ओ से हूं। ये सारे मिट्टी के दीपक मैं अपने कमर्चारियों ,रिश्तेदारों को गिफ्ट दूँगी ।ताकि वे लोग इस मिट्टी के दीपक से अपने घरों को रोशनी करके शुद्ध पर्यावरण का संदेश देवें। कितने के हैं ये पूरे माटी के दिये?”
सुखिया ने संकोच भरे स्वर से कहा-“,आपको जो उचित लगे दे दो बिटिया, हमारी भी दिवाली मन जाए बस।”
युवती ने उन माटी के दियों की कीमत पूरे चार हजार चुका कर ।सुखिया को दीपावली का बड़ा गिफ्ट दे दिया।
सुखिया ने खुश होकर उसे खूब आशीर्वाद दिया।और खुशी-खुशी दीवाली मनाने की तैयारी करने लगी।
— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- [email protected]

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