कविता

वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को रिमूव करते हैं

जो समाज सेवा में पिछले दरवाजे से घुसते हैं
गैर कानूनी गतिविधियों की आड़ में चलते हैं
समाज सेवा में मुखौटे बने रहते हैं
वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को रिमूव करते हैं

समाज में पोल पट्टी खुलने से डरते हैं
स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने की चाहत रखते हैं
मोहल्ले की दिखावटी साफ़ सफाई कराते हैं
वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को रिमूव करते हैं

गैर कानूनी कार्यों की आड़ में छिपते हैं
नेताओं के कार्यक्रमों में एंकरिंग करते हैं
खैराती एडमिन अध्यक्ष एंकर होते हैं
वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को रिमूव करते हैं

ख़ुद के पिता से नौकरी करवाते हैं
समाज को गरिमा की पाठ पट्टी पढ़ाते हैं
अपनी प्रतिष्ठा की शेखी बगारते हैं
वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को रिमूव करते हैं

गैर कानूनी कार्यों पर धौंस दिखाते हैं
विधानसभा उम्मीदवार के आगे पीछे घूमते हैं
अपनी पहचान की झूठी शेखी बगारते हैं
वें लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को रिमूव करते हैं

— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया