चंदा के बिन, नहीं चाँदनी
संग-साथ बिन नहीं है जीवन, मैं-मैं मिल कर हम बनते हैं।
चंदा के बिन, नहीं चाँदनी, चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।।
पुरुष और प्रकृति मिलकर।
राग और विराग से सिलकर।
सुगंध जगत को देते हैं मिल,
कमल के साथ कमलिनी खिलकर।
पथ के बिन कोई पथिक हो कैसे? पथिक से ही, पथ बनते हैं।
चंदा के बिन, नहीं चाँदनी, चाँदनी से ही चाँद नित सजते हैं।।
साध्य और साधन मिलकर।
मेघ आते हैं, हिल-मिलकर।
साधक बिन, साधना कैसी?
नदी पूर्ण सागर से मिलकर।
अकेला वर्ण कोई अर्थ न देता, मिलकर अर्थ निकलते हैं।
चंदा के बिन, नहीं चाँदनी, चाँदनी से, चाँद नित सजते हैं।।
एक के बिन, अस्तित्व न दूजा।
नर बिन, नारी करे न पूजा।
पंच तत्व के मिलने से ही,
जन्म लेता है जग में चूजा।
राष्ट्रप्रेमी मिलकर ही राष्ट्र है, अलगाव से, राष्ट्र बिखरते हैं।
चंदा के बिन, नहीं चाँदनी, चाँदनी से, चाँद नित सजते हैं।।