माटी का दीपक जले, संस्कृति का हो भान : अंतस् की 63वीं काव्य-गोष्ठी
सनातन संस्कृति में अधिकांश परम्पराओं का वैज्ञानिक आधार रहा है और समाज-हित में पर्व तथा दैनं-दिनं के क्रिया-कलापों की बुनावट में इस तरह शामिल कर लिया गया कि स्वत: ही वांछित कार्य हो जाते हैं| दीप महोत्सव का महत्त्व इसलिए भी और बढ़ जाता है क्योंकि मिट्टी के दीपक कुम्हारों का पालन-पोषण करते हैं, साथ ही रुई की बत्तियों बनाने वालों का भी; सफ़ाई-पुताई करने वालों की भी जीविका का प्रबंध करते हैं तो दूध-मिठाई वालों का भी, मिली-जुली सब्ज़ी जो गोवर्धन के दिन अन्नकुट पर खाई जाती है उसका महत्त्व भी रत्ती भर कम नहीं|
धनतेरस से आरम्भ हो भैया दूज के पावन पर्व तक मनाये जाने वाले इस महोत्सव को केंद्र में रखते हुए अंतस् की 63 वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन हुआ|
अलीगढ़ से राष्ट्र-प्रेम की कविताओं विशेषकर दिनकर-साहित्य के विद्वान डॉ दिनेश कुमार शर्मा की अध्यक्षता तथा अंतस्-अध्यक्ष डॉ पूनम माटिया के संयोजन-सञ्चालन में संपन्न इस गोष्ठी में भारत के विभिन्न राज्यों से कवि-कवयित्रियों ने सहभागिता की तथा कई सहृदय श्रोताओं का उत्साहवर्धक साथ मिला|
अपने अध्यक्षीय-उद्बोधन में दीप-मलिका के उल्लास पर्व का महत्त्व बताते हुए दिनेश शर्मा जी ने अंतस् की विषय-केन्द्रित गोष्ठियों की सराहना की तथा सभी कविजन के काव्य-पाठ पर अपने प्रेरणास्पद विचार रखे तथा अपनी प्रस्तुति में छंदबद्ध कविता पढ़ी-
राम राज्य आदर्श मनों में, अमा कार्तिकी को चमका।
चले पटाखे दीप जले फिर, तमस मिटा, जीवन दमका।।
अज्ञानता से दूर कर दे, ज्ञान से भर दे-शारदे से निवेदन करते हुए सरस्वती वंदना प्रस्तुत की ग़ाज़ियाबाद से पूजा श्रीवास्तव ने तथा सजग सृजनकर्ता का दायित्व निभाते हुए पढ़ा-
मेहनत से दीपक बने, मिट्टी के अनमोल/ लरियों के आगे रहा न इनका मोल|
दीप जलाओ जगमग जगमग, ऐसा कर दो उजियारा/ पुलकित हों सब रौशन होकर, दूर हटे सब अंधियारा।– छाता, मथुरा से रामदेव शर्मा ‘राही’ ने भी विषय सम्बंधित अपनी सुंदर कवितायें प्रस्तुत कर सभी का मन मोहा|
वरिष्ठ शायरा सोनम यादव जी ने गोष्ठी के दौरान विभिन्न रचनाओं पर लाक्षणिक अभिव्यक्ति देते हुए विरोधभास तथा मानवीकरण से अलंकृत सुंदर गीत पढ़े-
आज मावस को पूनम बना ले सखी
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धन्वन्तरी करते कृपा, देते हैं आरोग्य
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जगमग दीप देख धरा से अँधियारा भागा
दिल्ली से डॉ नीलम वर्मा ने अपने ‘ज्योति-दीप’ गीत –हों सहस्र ज्योति-दीप/हों सहस्र ज्योति-कण पढ़ा|
अन्य प्रस्तुतियों के साथ-साथ संचालिका पूनम माटिया ने भी दीपवाली-दोहावली प्रस्तुत की साथ ही साथ शोध-आधारित गीत ‘गैय्या कलियुग में लाचार’ गीत पढ़ा जिसपर विचार-मंथन भी हुआ-
नर-नारी बच्चों सहित सब का है अरमान/ लक्ष्मी इस दीपावली आयें बन मेहमान
माटी का दीपक जले, संस्कृति का हो भान/ सबको ही रोटी मिले, हों सबके भगवान
सुंदर दीपक घी भरा, सब साजो-सामान/ राम सिया की भेंट हों पूजन अर जलपान
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गौ माता अन्नपूर्णा, जीवन का आधार/ माँ-सम सुत को पालती, कृषि-कृषक-उद्धार
मनवांछित फल दायिनी, धरा पे है उपकार/भव-पालक की प्यारी गैय्या कलियुग में लाचार
दीपोत्सव की शुभकामनाओं के आदान-प्रदान उपरांत सोनम यादव ने अंतस् के संरक्षक श्री नरेश माटिया, वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्रीमती अंशु जैन, सक्रिय कार्यकर्त्ता आर्किटेक्ट तरंग माटिया तथा उपस्थित श्री कँवल कोहली जी तथा अन्य सभी को विधिवत धन्यवाद ज्ञापित किया|