कविता

आ रही है दीपावली

आ रही है दीपावली
अबके बरस तुम रखना ख्याल
मिट्टी के दीपक तुम खरीदना
हो जाएगी उनकी दीवाली भी खुशहाल

पटाखे जलाकर प्रदूषण मत फैलाना
मिट्टी के ही केवल तुम दीपक जलाना
बर्गर पीजा को एक दिन देना विराम
पारंपरिक पकवान उस दिन खूब खाना

पूरा साल मिट्टी से खेलता है कुम्हार
मिट्टी में रख देता है अपना दिल निकाल
मिल जाएगा उसको मेहनत का फल
बनने न पाये कोई उसके जी का जंजाल

अच्छे अच्छे स्वादिष्ट पकवान उस दिन बनाना
खुद खाने से पहले लक्ष्मी को चढ़ाना
पहले माता पिता के चरणों में शीश झुकाना
उसके बाद तुम फिर दीवाली मनाना

हर वर्ष लेते है पर्यावरण को साफ रखने की कसम
फिर जम कर दीवाली को पटाखे हैं चलाते
भूल जाते है पिछले वर्ष क्या कसम थी खाई
हर वर्ष फिर लाखों टन कचरा है फैलाते

इस दीवाली को मत फैलाना धुआं और कचरा
अम्मा के हाथ के पारंपरिक पकवान तुम खाना
पाश्चात्य सभ्यता के आडम्बर से बाहर निकलकर
अपनी संस्कृति को हमें है अपनाना और बचाना

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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