कविता

कुचल दिया भरोसा ले गया विश्वास निकाल

सुना था शहर में मिलता है फसल का अच्छा दाम
यही सोच कर निकल पड़ा गांव से एक किसान
दो घंटे की उतराई सिर पर बेचने के लिए कुछ सामान
जा पहुंचा भटकते भटकते सामने दिखी आढ़ती की दुकान

इतने में सामने से आ गया एक लड़का जवान
हाव भाव उसके देखकर लिया उसने यह जान
देहाती है पहली बार पहुंचा है गांव से शहर
पांव छुए उसके दिया बहुत इज़्ज़त मान

इतना अपनापन क्यों जता रहा है यह अनजान
समझ नहीं पाया सीधा साधा भोला वह किसान
बातों ही बातों में फैलाया उसने ऐसा जाल
ऐसा लगा उसको जैसे बरसों की है पहचान

थोड़ी देर बात करके किसान को चंगुल में फंसाया
अच्छे दामों की बात करके उसका सामान उठाया
किसान को सड़क के किनारे पैरापिट पर बिठाया
माथा ठनका किसान का बहुत देर तक जब वह नहीं आया

थोड़ी देर में एक भद्रपुरुष उधर से गुजरा
नज़र पड़ी उसकी गुमसुम बैठा था किसान
पूछा उसने क्यों भाई क्या हुआ क्या है बात
सुन कर उसकी बात बहुत हुआ हैरान

ठग था वह लड़का चल गया था अपनी चाल
अपना बन कर लूट लिया था किसान का सारा माल
पछता रहा था क्यों आया शहर बेचने सामान
कुचल दिया भरोसा ले गया विश्वास निकाल

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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