ब्रांडिंग
लघुकथा
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“सर, आप कलेक्टर होकर भी ऐसे किसी भी सड़क किनारे स्थित सैलून में सेविंग कराने या बाल कटवाने बैठ जाते हैं । टिन-टप्पर वाले रेस्टोरेंट में नास्ता-पानी कर लेते हैं । विडिओ शेयर करके लोकल यू-ट्यूबर्स बड़े मजे से लाइक-कॉमेंट्स बटोर रहे हैं ।’’ एक दिन पी ए ने हिम्मत जुटाकर पूछ ही लिया ।
“इसमें बुरा क्या है वर्मा जी । तुमने शायद गौर नहीं किया कि जिन–जिन जगहों में मैं जाता हूँ, उनकी सेलिंग पहले से काफी बढ़ जाती है । बेचारे गरीब इस आड़ में दो पैसे कमा लेते हैं । रही बात यू- ट्यूबर्स की, तो उन्हें भी उनका काम करने दो । मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुराई है ।” कलेक्टर साहब ने कहा ।
“जी सर, आप बिल्कुल सही कह रहे हैं । मैंने देखा है बहुत से ऐसे लोगों को अपनी दुकान में आपके साथ फोटो लगाए हुए देखा है । यू-ट्यूबर्स भी खूब मसाले लगा-लगाकर इनका प्रचार-प्रसार कर रहे हैं । यही कारण है कि अब छोटे-बड़े अधिकारी और अमीर सेठ लोग भी बड़े-बड़े मॉल या ब्रांडेड होटल या सैलून की बजाय इनके पास आने लगे हैं ।”
“यही तो मैं चाहता हूँ वर्मा जी । आपको तो पता ही है कि मैं खुद एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से बिलोंग करता हूँ । मुझे अच्छे से पता है कि इन छोटे-छोटे व्यापारियों को अपना परिवार चलाने के लिए कितना पापड़ बेलना पड़ता है ।”
कलेक्टर साहब की बातें सुनकर पी ए का उनके प्रति सम्मान पहले से कहीं अधिक बढ़ गया ।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़