“क्षितिज के छोर तक” : धरा को महकाती साहित्यिक वल्लरियाँ
अकाट्य सत्य है कि साहित्य की आदि विधा छान्दस काव्य है। सर्वप्रथम छंद से ही काव्य प्रारम्भ हुआ इसलिये गीत को भी आदिविधा माना गया है। साहित्य में दो प्रकार की ही विधा हैं- गद्य और पद्य। गद्य में छन्द का अभाव रहता है जबकि पद्य की बिन छन्द के रचना किया जाना असंभव है। प्रस्तुत काव्य संग्रह में विविध विधाओं में सुकवयित्री द्वारा प्रस्तुतअभिव्यक्ति में काव्य वैविध्य गुण विद्यमान है एवं तुकांत , अतुकांत, गद्य गीत आदि विधाओं का समावेश है। इस संग्रह में उचित शब्द संयोजन एवं अलंकारों से विभूषित कृति का सौष्ठव सराहनीय है।
सुकवयित्री पूनम माटिया जी को कृति के प्रणयन के लिये बहुत बहुत बधाई एवं साधुवाद व शुभकामनायें।
🌹काव्यात्मक समीक्षा🌹
तूलिका के माध्यम से काव्य रूपी सागर में
साहित्याभिव्यंजना के भाव भरे प्यारे हैं
अभिव्यक्ति भावना की प्रतिभा के आँगन में
गीत-कविता के रूप नए-नए धारे हैं
काव्य में पिरोकर सजाये हैं सलोने “देव”
शब्द रूपी मोतियों के हार न्यारे-न्यारे हैं
“क्षितिज के छोर तक” छाया काव्य-संग्रह ये
माटिया जी ने विचार अपने सँवारे हैं।।
सरस्वती-वंदना से करके प्रारम्भ काव्य
सावन की मनुहार आपने सजायी है
प्रकृति में पंचभूत सार को सजाने वाले
ऋषियों की वैज्ञानिक नीति समझायी है
कोपल निकलने से पहले क्या होता ‘देव’
बाँस की कहानी रम्य काव्य में बातायी है
जीवन के पहलू में कितने भरे हैं भाव
करने उजागर ही लेखनी चलायी है।।
संतति का देखती है माँ सदैव ही उत्कर्ष
उसकी खुशी में निज दुख भूल जाती है
सीढ़िया सफलता की चढ़ती संतान जब
वैभव अपार भी संतान पे लुटाती है
संस्कारों का दिया ज्ञान, माँ है जग में महान
“क्षितिज के छोर तक” की कथा बताती है
प्रेशर कुक्कर जैसी याद बतलायी “देव”
मन में तूफान-सा जो शोर लिये आती है।।
नई पीढ़ियों को सदा संस्कार दें उपहार
आपने सफाई-अभियान समझाया है
पर्यावरण के साथ गंदगी है नदियों में
भारत की वेदना से रूबरू कराया है
सीता-राम की पुकार, भू का करने उद्धार
कृति में अपार नव्य भाव भर आया है
नारी और साधु-संतों की दशा लिखी है ‘देव’
दहेज़ के दानव का रूप भी बताया है।।
गीत-कविता-कवित्त साहित्य के कानन में
कुंडलिया छन्द संग आभा बिखरा रहे
मन में विशेष अभिलाषा रहीं आपके में
राम, कृष्ण, देश, मित्र, भावना में भा रहे
चाहत के नए-नए हैं आपने सँजोये रंग
भाव अभिभावी संग भावना सजा रहे
अखिल कृति में कामना ही कामना है ‘देव’
नव्य अहसास भव्य लालसा जगा रहे।।
जय माँ झंडेया वाली रचना लिखी विशेष
प्यार में लटें जज़्बात की भी बिखरायीं हैं
संस्कृत भाषा की लघु झलक कृति में दिखी
कृष्णपक्ष-शुक्लपक्ष बातें समझायीं हैं
लोकतंत्र रक्षित हो, हो सके कभी न हार
राष्ट्र भावना की धार कृति में बहायीं हैं
जब कभी दिल की ज़मीं पर पड़े क़दम
जीवन की भी विविध भावना जगायीं हैं।।
शब्द-शब्द बोलता है, मन को टटोलता है
खोलता है गाँठ अभिलाषा की जो मन में
पद्य और गद्य अन्य भी तुकांत-अतुकांत
विविध विधाओं की छवि धरा गगन में
नज़र के सामने आ, फेल हो गये का भाव
कृति का कलेवर हुलास भरे तन में
दर्द गईया मईया का भी कलयुगी लिख ‘देव’
भावना जगा रहीं हैं आप जन-जन में।।
खोटे सिक्के को प्रतीक मान रची रचना है
सपनों का बादल प्रतीकों में सजाया है
स्वेटर के फंदे का प्रतीक बूँद लिया मान
किन्तु अर्थ में समूल सागर सामाया है
लोरी को प्रतीक माना निंदिया की घुट्टी देव
कविता में भाव अभिलाषा का जगाया है
शुभकामनायें मेरी हैं अनन्त ‘पूनम जी’
“क्षितिज के छोर तक” काव्य पहुँचाया है।।
साहित्यिक साधना में क्षितिज के छोर तक
परचम आपने अनूठा लहराया है
छन्दबद्ध, छन्द-मुक्त गद्य कवितायेँ लिखीँ
नाटिकायें, संस्मरण, अन्य को रचाया है
शोधपत्र, यात्रा का वृत्तांत, अन्य लिख ‘देव’
साहित्यिक-उपवन ख़ूब महाकाया है
आपके व्यक्तित्व में कृतित्व की छटा’ अनूप
“क्षितिज के छोर तक” भाव पहुँचाया है।।
— देवेन्द्र देव मिर्ज़ापुरी