ग़ज़ल
सुब्ह है इस प्रकार से अच्छी
धुंध है अंधकार से अच्छी
मत उतरना कि डूब जाओगे
ये नदी आर-पार से अच्छी
कब पगों को नसीब पगडंडी
हर किसी रहगुज़ार से अच्छी
दिल न देना न दर्द लेना है
बात ये किस विचार से अच्छी
कह रहा वस्ल से गुज़रकर मैं
बेक़रारी क़रार से अच्छी
तुम मिले इस ख़याल से कहता
शीत ऋतु है बहार से अच्छी
ये न जाने घमंड, ख़ुदग़र्ज़ी
बात कोई न प्यार से अच्छी
— केशव शरण