गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

किस ने आग लगाई है इधर-उधर-इधर।
दंगाई दंगाई है इधर-उधर-इधर।

रिश्वत लेता मगर सुराख़ कोई ना छोड़े,
चर्चा में सच्चाई है इधर-उधर-इधर।

तेज़ हवा के ऊपर क्यों दोष लगाते हो,
लौ ने आग मचाई है इधर-उधर-इधर।

हाकिम से फिर हक़ लेना आसान नहीं,
लोगों ने आवाज़ उठाई है इधर-उधर-इधर।

शाम ढले को साजन ने फिर घर आना है,
पलकों ने सेज बिछाई है इधर-उधर-इधर।

परदेशों से लगता कोई आने वाला,
महफ़िल ख़ूब सजाई है इधर-उधर-इधर।

लगता मारूस्थल की फिर फरियाद सुनी है,
एक घटा फिर छाई है इधर-उधर-इधर।

रूठ के कौन गया खाते पीते कुटुम्ब से,
तनहाई-तनहाई है इधर-उधर-इधर।

दूर दिशायों भीतर खुशबू-खुशबू आए,
फूलों पर अंगड़ाई है इधर-उधर-इधर।

बालम आधी रात हुई जश्न सा लगता है,
यादों की शहनाई है इधर-उधर-इधर।

— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409

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