ग़ज़ल
किस ने आग लगाई है इधर-उधर-इधर।
दंगाई दंगाई है इधर-उधर-इधर।
रिश्वत लेता मगर सुराख़ कोई ना छोड़े,
चर्चा में सच्चाई है इधर-उधर-इधर।
तेज़ हवा के ऊपर क्यों दोष लगाते हो,
लौ ने आग मचाई है इधर-उधर-इधर।
हाकिम से फिर हक़ लेना आसान नहीं,
लोगों ने आवाज़ उठाई है इधर-उधर-इधर।
शाम ढले को साजन ने फिर घर आना है,
पलकों ने सेज बिछाई है इधर-उधर-इधर।
परदेशों से लगता कोई आने वाला,
महफ़िल ख़ूब सजाई है इधर-उधर-इधर।
लगता मारूस्थल की फिर फरियाद सुनी है,
एक घटा फिर छाई है इधर-उधर-इधर।
रूठ के कौन गया खाते पीते कुटुम्ब से,
तनहाई-तनहाई है इधर-उधर-इधर।
दूर दिशायों भीतर खुशबू-खुशबू आए,
फूलों पर अंगड़ाई है इधर-उधर-इधर।
बालम आधी रात हुई जश्न सा लगता है,
यादों की शहनाई है इधर-उधर-इधर।
— बलविन्दर बालम