बुजुर्ग भी ढलते सूरज के सम
उगता सूरज सबको भाता,
लगता उसका ओज ललाम,
अस्ताचलगामी जब होता दिनकर,
ढलते को भी करें प्रणाम।
ढलता सूरज अनुभव की आभा,
लालिमा लिए उपकार की,
छ्ठ पर्व के ढलते को नमन से,
संस्कृति है दिन चार की।
नहाय-खाय से शुरू छ्ठ पूजा,
खरना, संध्या अर्घ्य, श्रद्धा-विश्वास,
सृष्टि की मूल प्रवृत्ति छठ मैय्या,
प्रात: अर्घ्य से पूर्ण करे आस।
बुजुर्ग भी ढलते सूरज के सम,
ज्ञान-अनुभवों का होते खज़ाना,
जीते जी उनकी तृप्ति-संतुष्टि,
महत्वपूर्ण है, भूल न जाना।
सूर्य के सम निष्काम रहकर,
करते पालन-पोषण-संरक्षण,
जाता सूर्य सौंपता डोर शशि को,
नव पीढ़ी को बुजुर्ग अधिरक्षण।
== लीला तिवानी