वजूद को बचाना है तो
सब लोग अक्सर कहते हैं कि इस दुनिया में झूठी तकरीर ही सियासत है यहां,
भूल जाते हैं लोग इस बात को यह नहीं सही सियासत है।
झूठ बोलकर सच को छुपाना चाहते हैं हरेक लोग यहां,
इस इल्म को हासिल करना चाहते हैं सब ,बन जाते इसके हिमायत हैं।
हरेक पड़ाव पर वादे करते हुए साथ देने की बातें करने की कोशिशें जारी है,
वक्त पर खरा उतरने की नहीं देखी जाती यह रिवायत है।
कौन से खानदान में जिन्दा जिस्म को तबज्जों दिया गया है,
मरने पर तो हरेक मज़हब मानने वाले लोगों की भीड़ उमड़ने की दिखता रिवायत है।
ख्वाबों से दोस्ती का दस्तूर काफी पूरानी है इस जहां में यहां,
नींदों से दुश्मनी तो आज़ बन चुकी प्यार के खेल में एक बदनाम सियासत है।
मतलबी निगाहों से मत देख समन्दर की तरह इस जहां में यहां,
यह कैसा बड़प्पन है कि लहरों से सताई हुई लाशें कि करते सियासत है।
दोस्ती की आजमाइश तो जनाब पतझड़ के वक्त दिखाई देती है,
सावन की दिशा और दशा से दोस्ती की परख नहीं होती,यही आज़ की नई रिवायत है।
— डॉ. अशोक, पटना