फासले कम क्यों करें हम
दोस्ती में नस्ल देखकर,
एतबार नहीं की जाती है।
तन्हाई में अपनी पहचान खत्म करने की हिम्मत,
रास नहीं आती है।
फासले कम हुई तो दीवारों पर,
उम्मीद बढ़ी।
तरक्की का आलम ऐसा दिखा जो,
शरारतों ने हदें पार कर ही रूकी,
जिसने आसरे खत्म कर,
आगे बढ़ने में मदद की।
गलतफहमियां हमेशा पैदा कर,
लोग अक्सर रिश्ते बिगाड़ जाते हैं।
इसकी सोहबत में,
तरक्की बड़ी कोशिश करने लगती है,
इस इल्म को हासिल कर,
सब लोग हदें पार कर जाते हैं।
रिश्तों को बचाने में,
कुछ हमदर्दी जताते हैं,
उन्हें चुप करना,
अक्सर अपने समझ नहीं पाते हैं।
शहादते अक्सर कुछ दरिन्दो को,
खबरदार करती है।
सही क़दम उठाने वाले लोगों में,
बस मेहनत से निकली हुई आवाज ही,
दोस्ती और प्यार बनकर,
सामने उतरकर खड़ी हो जाती है।
उम्मीदों को जीवित रखने में,
इस इल्म का पूरा होना जरूरी है।
आगे बढ़ने की राह पर,
इस नसीहत की अत्यधिक आवश्यकता है,
हम कह सकते हैं,
यही वर्तमान की मजबूरी है।
— डॉ. अशोक, पटना