मुक्तक
जीने की ख़ुशी, न मरने का गम है,
मानव मिला तन, यही क्या कम है।
किया क्या है हमने, यह तन पाकर,
जीवन मरण का, यह कैसा भ्रम है?
डरते नहीं हम मरने से, लेकिन,
जीने का मक़सद, हमारा कर्म है।
संस्कार संस्कृति, हमारी विरासत,
पुरातन होने का, हमको न गम है।
मर्यादा में रहना, है संस्कृति हमारी,
बुजुर्गों का सम्मान, है प्रकृति हमारी।
प्रकृति ही ईश्वर, आभार मानते हैं,
भारत है विश्व गुरू, यह कीर्ति हमारी।
— डॉ अ. कीर्तिवर्द्धन