सभ्य नागरिक
आखिर क्यों नहीं बन पाये
हम सब
एक सभ्य नागरिक
एक महान देश के
बेहद महत्वपूर्ण
और विचार का
मुद्दा है यह।
सभ्य नागरिक बनानें की दुकानें
आजादी के बाद
बढ़ती गई और बढ़ती गई।
शिक्षण संस्थाएं, मंदिर – मस्जिद, सत्संग भवन
साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्थाओं का
विकास हुआ दिन -रात।
लेकिन हम दिन दूने
रात चौगुने की दर से
होते गये असभ्य,
पहले से कहीं ज्यादा और ज्यादा।
और आज तो यह असभ्यता
अपने चरम पर है।
— वाई. वेद प्रकाश