कविताओं के माध्यम से बोलचाल की भाषा में सिखाती हैं लोकोक्तियों का प्रयोग – पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
कविताओं के माध्यम से बोलचाल की भाषा में सिखाती हैं लोकोक्तियों का प्रयोग
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सतीश चंद्र शर्मा ‘सुधांशु’ किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वे विगत पाँच-छः दशकों से सतत गीत, गजल, व्यंग्य, लघुकथा, छंद के साथ ही साथ बाल साहित्य सृजन में लगे हुए हैं। उनकी विभिन्न विधाओं की रचनाएँ स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। अब तक प्रकाशित 17 पुस्तकों में से समीक्ष्य पुस्तक ‘आओ पूछें दादू से’ उनकी बाल साहित्य की पाँचवीं कृति है। कुल 32 पृष्ठों की इस पुस्तक में उनकी दैनिक उपयोग में प्रयुक्त ‘अ’ अक्षर से शुरू होने वाली 30 लोकोक्तियों पर आधारित 30 बाल कविताएँ संग्रहीत हैं। सभी कविताएँ 12-12 पंक्तियों की हैं। इसका प्रकाशन के.बी. हिन्दी सेवा न्यास बिसोली, बदायूं, उत्तरप्रदेश की ओर से हुआ है। इस पुस्तक की भूमिका देश के दो प्रख्यात साहित्यकारों डॉ. घमंडी लाल अग्रवाल और डॉ. राकेश चक्र जी ने लिखा है।
डॉ. सतीश चंद्र शर्मा एक प्रख्यात शिक्षाविद और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी हैं। इसकी झलक उनकी कविताओं में सहज ही दिख जाती है। उनकी दृष्टि बहु-आयामी है। उन्हें बाल मनोविज्ञान की अच्छी समझ है। वे स्वयं 5 प्यारे-प्यारे बच्चों के दादा-नाना हैं। उन्हें ज्ञात है कि दूध, पौष्टिक आहार, खेल और जीवनरक्षक दवाएँ बच्चों के लिए जितनी आवश्यक होती है, उतनी ही आवश्यक होती है– अच्छी पुस्तकें। बच्चों का मन एक कोरे कागज जैसा होता है, जिस पर लिखी गई इबारत को आसानी से नहीं मिटाया जा सकता है। बाल मन पर जो कुछ अंकित हो जाता है, वह अमिट स्थान बना लेता है। बच्चों के सुदृढ़ जीवन निर्माण में बाल साहित्य का प्रमुख स्थान है। आज जो बच्चे अच्छा बाल साहित्य पढ़ेंगे, वे ही कल देश के अच्छे नागरिक बनेंगे। जिस प्रकार के आदर्श और नैतिक मूल्य हम उनके सामने रखेंगे, भविष्य में वही फलित होंगे। यदि आज हम अपने बच्चों को श्रेष्ठ बाल साहित्य ही देंगे, तो उन्हें अनेक दुष्प्रभावों से मुक्त रख सकते हैं।
इस संग्रह की कविताओं में मानवीय मूल्यों की झलक दिखाई देती है, जिन्हें पठनोपरांत इनकी सम्प्रेषणीयता पाठक के अंतर्मन की गहराई तक उतर जाती है। बच्चों की रुचि के अनुसार तुकबंदी का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। पुस्तक के शीर्षक ‘आओ पूछें दादू से’ से ही स्पष्ट है कि इसकी कविताएँ दादा और पोते के बीच संवाद पर आधारित होंगी। इसमें संग्रहीत हर कविता की शुरुआत में पोते द्वारा दादा से सवाल पूछा जाता है और दादा उसका जवाब देते हैं। बताने की जरूरत नहीं कि यहाँ दादा स्वयं कवि डॉ. सतीश शर्मा ही हैं, जैसा कि उन्होंने मेरी बात में लिखा भी है और पुस्तक अपने पोते-पोतियों को समर्पित किया है। इस पुस्तक में संग्रहीत हर कविता का शीर्षक अ अक्षर से शुरू होने वाली एक लोकोक्ति है।
डॉ. सतीश चंद्र शर्मा की भाषा काफी लचीली है, जिसमें वे आम बातचीत के अंदाज में ही अपनी बात काव्यात्मक शैली में कहते चले गए हैं। सामान्य शब्दों के साथ ही साथ उन्होंने कहीं-कहीं पर भारी भरकम शब्दों का भी प्रयोग किया है, जिनका पर्याय आम बोलचाल के शब्दों में भी उपलब्ध है। कविताओं की भाषा सहज, सरल, स्वाभाविक और सम्प्रेषणीय है। कवि ने बहुत ही सीधे-सादे शब्दों के माध्यम से लोकोक्तियों का अर्थ वाक्यों में प्रयोग करके इस तरह से समझाया है कि बच्चे एक बार समझ जाने के बाद उसे कभी भूल नहीं पाएँगे। यथा, “दादू बोले- कोई किसी को/अपना कष्ट सुनाता।/पर सुनने वाला न उन/कष्टों पर ध्यान लगाता।/ऐसे में सारे लोगों का/होता बस यह कहना।/अंधे के आगे रोना है/अपने नयना खोना।”
डॉ. सतीश चंद्र शर्मा ने भावपक्ष, कलापक्ष एवं भाषा-शैली का विशेष रूप से ध्यान रखा है, इसलिए उत्कृष्ट श्रेणी की बाल कविताओं का सृजन करने में सफल हो सके हैं। इन कविताओं में मनोरंजन के साथ ही साथ एक मीठी सीख और जीवन को खूबसूरत बनाने वाले असरदार सन्देश भी हैं। देशप्रेम के संस्कार के साथ रिश्तों की मिठास भी है। यथा, “दादू बोले- जहाँ गुणी/मूरख में रहे न अंतर।/एक तुला में दोनों को/ही तौला जाता अक्सर।/ऐसे शासन को कहते/हैं बिना लगाए देर।/राजा चौपट होगा ही/जब नगरी हो अंधेर।”
पुस्तक की डिजाइन और साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया गया है। आवरण पृष्ठ बहुत ही आकर्षक है। व्याकरणिक और वर्तनीगत अशुद्धियाँ भी नगण्य है। इसकी बाल कविताएँ सहज, सरल, बोधगम्य है और सुंदर चित्रों से सजी है। पुस्तक का मुद्रण भी साफ-सुथरा है।
डॉ. सतीश चंद्र शर्मा बाल मन के कुशल चित्तेरे हैं। संग्रह की सभी कविताएँ बच्चों के मन की है, जो बच्चों के साथ बड़े पाठकों को भी रुचिकर लगेगी। आशा है यह बच्चे और उनके अभिभावकों के बीच लोकप्रिय सिद्ध होगा व बाल साहित्य जगत की श्रीवृद्धि करेगा। डॉ. सतीश को इस सुंदर बाल कविता संग्रह के लिए हार्दिक बधाई।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़