कविता
रात के आगोश में
सिर्फ खामोशी नहीं लेटती है।
उदासी भी लेती है अंगड़ाइयां
जैसी काली परछाइयां
अवसाद अपना बिस्तर जमा लेता है।
मन के कमरे में
और कब्ज़ा लेता है पूरा आशियाना।।
अधूरे ख्वाब की मजार
आंखो में भर जाती है।।
आंसुओ से कभी कभी धुलती है।।
और भविष्य की चिंता
शिखर पहुंचती है।।
अंततः नींद को चुरा लेती है।।
विचलित हृदय भटकता है
एकांत शांत माहौल में
और विचारों का तूफान जैसे
समा गया हो होल में।।
आखिर यह खामोशी
जीवन के एकाकीपन को
और जीवंत करती है।।
कभी कभी जीवन का अंत करती है
— निशा अविरल