कविता

दोशाला

लो आ गया दिसंबर फिर से
तुम्हारी यादों का कोहरा
सुबह की पोटली में लिए
दिनभर दोशाला बुनूंगी
की इस कोहरे की ठंड से
निपट सकूं
धूप ने अब मनमानी शुरू की है
जून में उसे ज़ोर से डांटा था मैंने
अब मुंह फुलाए है
तुम और धूप एक जैसे हो
देर से नाराज़गी जताते हो
और देर तक नाराज़ रहते हो
जनवरी तक ये कोहरा सताएगा
दिसंबर रूठता हुआ जाएगा
मैं आखिर कितना मनाऊं इन्हे
ढीठ हैं इनके रवैये बड़े
ये दोशाला अगर कम पड़े तो
मैं पहाड़ से लकड़ियां लाऊंगी
शाम को चाय के साथ उनके
पास बैठ
इंतजार करूंगी की तुम पास बैठो
अगर ना आए फिर भी तो
अपने प्रेम का दोशाला ओढ़कर
उत्तरायण तक सो जाऊंगी।

— सविता दास सवि

सविता दास सवि

पता- लाचित चौक सेन्ट्रल जेल के पास डाक-तेजपुर जिला- शोणितपुर असम 784001 मोबाईल 9435631938 शैक्षिक योग्यता- बी.ए (दर्शनशास्त्र) एम.ए (हिंदी) डी. एल.एड कार्य- सरकारी विद्यालय में अध्यापिका। लेखन विधा- कविता, आलेख, लघुकथा, कहानी,हाइकू इत्यादि।

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