ख़ामोश तन्हाई
ख़ामोश थी तन्हाई मेरी बुझा जख़्म दुखाया आपने।
इश्क कहूॅं या मुहब्बत कहूॅं कैसा रोग लगाया आपने।।
बैचेन रहा दिल यह मेरा ,गये छोड़ जब से साथ मेरा,
भूल गया था याद तेरी फिर क्यों नैन बहाया आपने।।
जिंदा हूॅं इक शव की तरह मुझे मारा मेरा कसूर क्या,
धड़कती इन सांसों में क्यों फिर दर्द जगाया आपने।।
न रही चांदनी चांद बेहोश सा रात विरह भरी थी मेरी,
बिसरी यादों के झरोखों से फिर क्यों बुलाया आप ने।।
जीना गवारा न समझा मैंने सुकून पाऊं मैं जान दे के,
बीते लम्हों का साया बनके फिर क्यों बचाया आप ने।।
रो रहे अब तो मेरे, जिन के दिल में ,छुपा था दर्द मेरा,
जीना था दिन चार सही क्यों कफ़न सजाया आप ने।।
खुशियां सारी तुम पर वार दी नीरस बनी मेरी ज़िंदगी,
बेवफ़ा कभी बनते नहीं, दुनिया को दिखाया आप ने।।
अजनबी, बिन पहचान के,हाथ थाम जो हमने लिया,
प्यार करो नहीं कभी गैर से ,सब को सीखाया आपने।।
— शिव सन्याल