प्रयागराज का पर्व
गंगा, यमुना, सरस्वती, करती जीवन तार।
संगम की हर बूंद में, मिलता शुभ संसार।।
साधु-संत का मेला ये, लाए पुण्य विचार।
हर मन में श्रद्धा जगे, पाए सच्चा द्वार।।
बारह बरस का पर्व यह, संगम तीर महान।
भक्ति-भाव में डूबकर, आए हर इंसान।।
हर-हर गंगे की गूंज से, गूंजे जग संसार।
पाप मिटाए पुण्य दे, निर्मल बहती धार।।
साधु-संत और भक्तजन, लाते शुभ उपहार।
महाकुंभ का पर्व यह, पावन सुख विस्तार।।
बसे प्रयाग की रेत पर, संतों का दरबार।
हर पल मिलता संग में, ज्ञान और विचार।।
अमृतमयी यह गंगा, करती सब उद्धार।
जल की हर इक बूंद से, जागे सारा प्यार।।
प्रयागराज का पर्व यह, आस्था का प्रतीक।
जीवन को निर्मल करे, है यह पर्व अद्वितीय।।
— अवनीश कुमार गुप्ता ‘निर्द्वंद्व’