जीवनसाथी
सुबह-सुबह दिनेश जी को पार्क में प्राणायाम करते हुए देखकर मोहन जी आश्चर्य में भर गए। उन्होंने दूर से कहा,”राम राम मोहन भाई! आप आज इतनी सुबह यहाँ पार्क में? सब ठीक तो है न?”
“वैसे तो सब ठीक चल रहा है पर कोई रूठ गया है,” दिनेश भाई ने उत्तर दिया।
“अच्छा, यह तो गम्भीर समस्या है। इसलिये देर तक सोने वाले आप सुबह-सुबह पार्क में ताजी हवा लेने आ गये। अच्छा किया। इससे आपका मन भी शांत हो जायेगा,” दिनेश भाई ने कहा।
” इस बार रूठे हुये को मनाना बहुत मुश्किल है,” गहरी साँस भरते हुये मोहन भाई बोले।
“ऐसा कौन है? भाभीजी से नोक-झोंक चलती रहती है। रूठना-मनाना तो चलता रहता है। कहीं कोई और तो नहीं है”, आँखें मारते हुए दिनेश भाई कहा।
“अरे भाई! आप गलत समझ रहे हैं। यह कोई और नहीं, मेरी जीवनसाथी मेरी सेहत है।” जीवनसाथी की परिभाषा सुन मोहन भाई जोर-जोर से हँसने लगे और कहा,”धत् तेरे की।”
— डाॅ अनीता पंडा ‘अन्वी’