गीतिका/ग़ज़ल

बिखरो उच्छवासों में बनकर धड़कन

रूप सुधा का पान करा दो प्रियतम,
तृप्त हो तीर्थ बन जाएगा ये मन।1।

रोम-रोम आह्लादित, उर प्रेम विकसित,
चमकता दमकता, अलौकिक कंचन ।।2।

उष्ण कटि कमर मोहित, करता सबको,
पाकर तुमको हो जाए तन चंदन।।3।

बेहतर का आशय, नहीं अब मुझको,
इत्र सा महकाओ, मुझे बनकर सुमन।।4।

छूकर अधर भर, दो अद्भुत मुस्कान,
बिखरो उच्छवासों में बनकर धड़कन।।5।

अरुण लालिमा, लसित यौवन तेरा,
सबका प्यार झुककर करता वन्दन ।।6।

भुज-बन्धन में, जिसके बंधी हो तुम,
प्रेमी प्रतिभा-श्रृंगार भरता चितवन।।7।

— प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”

प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"

चेन्नई [email protected]

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