ग़ज़ल
खूं में डूबा है जहां।
सुर्ख सा है आसमां।
थूल से पूरा अटा,
चल रहा पर कारवां।
लक्ष्यअबमुश्किलनहीं
बढ़ चले हैं नौजवां।
पास इतने आ गये,
कुछ नहीं है दरमियां।
मत सुनो ये क्या कहा,
बदज़बां है बदज़बां।
— हमीद कानपुरी
खूं में डूबा है जहां।
सुर्ख सा है आसमां।
थूल से पूरा अटा,
चल रहा पर कारवां।
लक्ष्यअबमुश्किलनहीं
बढ़ चले हैं नौजवां।
पास इतने आ गये,
कुछ नहीं है दरमियां।
मत सुनो ये क्या कहा,
बदज़बां है बदज़बां।
— हमीद कानपुरी