दिल तो बच्चा है
शब्द क्यों खोने लगे हैं
सोच कर हैरान हूँ ।
चिंतन को वक्त नहीं
फिर भी परेशान हूँ।
एक आदत सी हो गई है
बेवजह चिंतित रहने की ।
अक्सर किसी की मजबूरियाँ
आज भी रूला देती हैं हमें।
दुख बाँट नहीं पाती हूँ
पर परेशान हो जाती हूँ
यही संवेदना और इंसानियत
जिंदगी की जरूरत है।
अपने आप से बातें करना
जिस दिन भूल जाऊँगी
जिंदा लाश बन जाऊँगी।
बच्चों के संग बचपन जी रही हूँ
परिंदों और तितलियों से
बातें करने लगी हूँ।
सोच का उम्र से कोई नाता नहीं
हे प्रभु इस जीवन से कोई गिला नहीं।
बच्ची बनकर अब तक जी रही
बच्ची समझ थाम लेना माँ बाहें मेरी ।
— आरती रॉय