कविता

दिल तो बच्चा है

शब्द क्यों खोने लगे हैं
सोच कर हैरान हूँ ।
चिंतन को वक्त नहीं
फिर भी परेशान हूँ।
एक आदत सी हो गई है
बेवजह चिंतित रहने की ।
अक्सर किसी की मजबूरियाँ
आज भी रूला देती हैं हमें।
दुख बाँट नहीं पाती हूँ
पर परेशान हो जाती हूँ
यही संवेदना और इंसानियत
जिंदगी की जरूरत है।
अपने आप से बातें करना
जिस दिन भूल जाऊँगी
जिंदा लाश बन जाऊँगी।
बच्चों के संग बचपन जी रही हूँ
परिंदों और तितलियों से
बातें करने लगी हूँ।
सोच का उम्र से कोई नाता नहीं
हे प्रभु इस जीवन से कोई गिला नहीं।
बच्ची बनकर अब तक जी रही
बच्ची समझ थाम लेना माँ बाहें मेरी ।

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - [email protected]