गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खत पढ़ने से पहले जला उसने दिया
दिल लुटने से पहले सजा उसने दिया

समझी नहीं उसने कभी चाहत मेरी
बारिश के मौसम में दगा उसने दिया

शम्मा जली परवाने से पहले सनम
परवाने को नामे वफा उसने दिया

करवट बदलकर रात फिर कटने लगी
क्या खूब सूरत सिलसिला उसने दिया

ख्वाबों ने पलकों में बसेरा कर लिया
वो रातें आँखों में बिता उसने दिया

आये हसीं रंगीन पल फिर सामने
गुम थे कहीं शायद जगा उसने दिया

पल कैद कर लूं उम्र भर चाहे दिल
जो रेत सा फिसला बचा उसने दिया

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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