खामोश कागज
यही कटु सत्य है,
मजबूत दृश्य है,
नवीन प्रयास है,
सटीक अहसास है।
आंदोलित मन को तसल्ली देती है,
अहसास दिलाने में,
खामोशियों से वज़ह पूछतीं है।
अक्षरों के मेले में,
यही आगाज़ दे रही है।
खामोशियों में शामिल,
कागज़ आज़ चुपचाप देखते हुए,
बस बरबस खुशियां ही,
सबमें पिरो रही है।
इस इल्म को पहचानते हैं सब लोग,
कहते और मानते हैं लोग।
इसकी सोहबत रखनी चाहिए यहां,
आगे बढ़ने में,
इसकी ज़रूरत है पड़ती है,
दुनिया क्या कहूं सारे जहां।
आनंद और उत्साह से,
इसकी वजह जानी जाती है।
अकेलापन महसूस कर,
नज़रों से देखते हुए,
सबको करीब लाती है।
खामोशियों से जुझते हुए,
इन कागजों पर,
अब लोग एतबार नहीं करते हैं।
बस अपनी हिफाजत करने में,
परेशान रहते हैं।
दुनिया में इल्म को हासिल करने वाले,
खामोश कागज़ की रफ्तार,
हमेशा आगे बढ़ाती है।
ज्ञान दर्पण में उम्मीद बनाएं रखने में,
इसकी पहुंच हरेक पड़ाव पर,
अक्सर देखने की जहां में,
भरपूर कोशिश की जाती है।
— डॉ. अशोक, पटना,