कविता

झाड़ू की तरह

घर की सामने राह की
सफाई करते करते
स्वयं घिस जाते हैं
टूट जाते हैं
अंदर से बाहर तक
कुछ किरदार
अपने आसपास
होते हैं मौजूद
झाड़ू की तरह
और कचरा
फिर आ जाता
रूप बदलकर
अगली सुबह
उनकी परीक्षा लेने

— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201

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