डिजिटल अरेस्ट से ठगी-कहां छुपी है नाकामी
21 वीं सदी के भारत में डिजिटल विकास काफी तेजी के साथ हो रहा है। इसको लेकर राजीव गांधी से लेकर मोदी सरकार तक अपनी पीठ थपथपाती रहती हैं। समय के साथ डिजिटल भारत की तस्वीर भी बदल रही है। लोगों की सोच और लाइफ स्टाइल दोनों चेंज हो गये हैं। आज के युग में मोबाइल या लैपटॉप पर मात्र उंगलियांे को घुमाकर सब कुछ हासिल किया जा सकता है। तमाम तरह की सुविधाएं जुटाई जा सकती हैं। सबसे खास बात यह है कि डिजिटल दुनिया का फायदा समाज के पढ़े-लिखे तबके के साथ-साथ कम पढ़े लिखे और यहां तक की अशिक्षित लोग भी बखूबी उठा रहे हैं,लेकिन डिजिटल विकास अपने साथ तमाम खूबियां लेकर आया है तो कुछ खामियां भी इसके साथ आ गई हैं। डिजिटल विकास की वजह से सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी मजबूत हुआ है,जो पूरी तरक से स्वतंत्र है,बिना किसी प्रतिबंध के चलता है। इससे भी खास यह है कि इसकी कोई सीमा नहीं है। सात समुंदर पार बैठा शख्स भी चाहे-अनचाहे किसी से नजदीकियां बढ़ा सकता है,लेकिन इस शख्स की सोच के बारे में कोई डिवाइस नहीं बता सकती है कि वह किस श्रेणी का इंसान है। यहीं से साइबर क्राइम की शुरुआत होती है,जिसको कई श्रेणी में बांटा जा सकता है।साइबर अपराध या साइबर सुरक्षा खतरा काफी दुर्भावनापूर्ण है,जो डेटा को नुकसान पहुँचाने, डेटा चुराने या सामान्य रूप से डिजिटल जीवन को बाधित करने का प्रयास करता है। साइबर खतरों में कंप्यूटर वायरस, डेटा उल्लंघन,सेवा से इनकार और अन्य हमले के तरीके शामिल हैं। साइबर के इसी खतरे का सबसे नया प्रारूप है कथित तौर किसी को डिजिटल अरेस्ट करके उससे ठगी करना।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तो पिछले तीन दिनों में ही साइबर अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट की दो बड़ी वारदातें कर डालीं। पहली घटना 17 नंवबर की है जब पीजीआई क्षेत्र में रहने वाली रिटायर्ड शिक्षिका को डिजिटल अरेस्ट करके से साइबर अपराधियों ने 18 लाख की ठगी कर ली। सबसे खास बात यह थी कि दोनों ही मामलों में साइबर अपराधियों ने अपने डिजिटल अरेस्ट के शिकार होने वालों को हफ्ते भर तक अरेस्ट रखा और किसी को पता नहीं चला। पुलिस इस वारदात को सुलझाने में उलझी थी तभी 19 नवंबर को पंचायती राज से रिटायर बुजुर्ग से क्राइम ब्रांच का अधिकारी बनकर साइबर अपराधियों ने 19.50 लाख की लूट कर ली। इससे पहले की घटनाओं पर नजर डाली जाये तो साइबर अपराधियों ने पीजीआई के पुराना कैंपस में रहने वाले डॉक्टर की बुजुर्ग मां को डिजिटल अरेस्ट कर मुंबई क्राइम ब्रांच व सीबीआई अधिकारी बन 18 लाख रुपये ठग लिए। एक अन्य घटना में एसजीपीआई की डॉ. रूचिका टंडन को डिजिटल अरेस्ट कर जालसाजों ने वसूले थे 2.81करोड़ तो हजरतगंज के अशोक मार्ग पर रहने वाले डॉक्टर पंकज रस्तोगी की पत्नी दीपा से 2.71 करोड़ रूपये वसूल लिये। जबकि इससे पूर्व अलीगंज सेक्टर एच निवासी डॉक्टर अशोक सोलंकी को 36 घंटे डिजिटल अरेस्ट कर ठगों ने उनसे 48 हजार रूपये वसूल लिये थे। उधर, गोमतीनगर में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना को भी ठगों ने डिजिटल अरेस्ट कर लिया था। उनकी बहू की सतर्कता के चलते वह बाल-बाल बच गए थे। हजरतगंज निवासी मरीन इंजीनियर एके सिंह को होटल में 48 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रखकर उनसे 84 लाख रुपये वसूल गए थे। साइबर अपराधियों ने तालकटोरा के रहने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर अविनाश श्रीवास्तव को एक घंटे रखा डिजिटल अरेस्ट कर 98 हजार वसूले थे। बहरहाल, यह समझने की कोशिश की जाये कि साइबर अपराध कैसे अंजाम दिये जाते हैं, इसके लिये कौन से सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किये जाते हैं तो इसमें कई सॉफ्टवेयर का नाम उभर कर आते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि डार्क वेब नाम की एक साइड साइबर अपराधियों के लिये सुनहरा मौका देने का काम करती है,जहां भारतीयों की गुप्त जानकारियां आसानी से साइबर अपराधियों को उपलब्ध हो जाती हैं।
साइबर अपराधी किसी को डिजिटल अरेस्ट के झांसे में लेते हैं तो अपने को असली दिखाने के लिये लिये पुलिस थानों और सरकारी कार्यालयों जैसे स्टूडियो का इस्तेमाल करते हैं और असली दिखने के लिए वर्दी पहनते हैं। ऐसे अपराधियों के हाथों देशभर में कई पीड़ितों ने बड़ी रकम गंवाई है। गृह मंत्रालय ने कहा था कि यह एक संगठित ऑनलाइन आर्थिक अपराध है और इसे सीमा पार अपराध सिंडिकेट की ओर से संचालित करने की जानकारी सरकार के पास है। हालांकि, कुछ अधिकारियों का कहना है कि ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ जैसी कोई चीज नहीं है, फिर भी शिक्षित व्यक्ति भी इन धोखाधड़ी करने वालों के झांसे में आ रहे हैं। भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र जो साइबर अपराध से संबंधित मुद्दों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है, ने यह भी एक एडवाइजरी जारी की है जिसमें कहा गया है कि सीबीआई पुलिस या ईडी किसी को भी वीडियो कॉल पर गिरफ्तार नहीं करते हैं। साइबर सुरक्षा एक्पर्ट जतिन जैन जैन ने बताया कि ये अपराधी अब इंसानी मन का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। पहले, उनका तरीका पीड़ितों को यह बताना होता था कि उनके पार्सल में ड्रग्स मिले हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा और कानूनी परिणामों के डर से पीड़ित पैसे दे देते हैं। अपराधी लोगों से जुर्माना देने या वकील करने के लिए भी कहते हैं। एक बार जब आप भुगतान कर देते हैं, तो वे जान जाते हैं कि पीड़ित अब कहानी पर विश्वास करते हैं। फिर पीड़ितों को कैमरे के सामने बैठने के लिए कहा जाता है जब तक कि वे पूरी राशि जमा नहीं कर देते।
एक नजर साइबर अपराध के आंकड़ों पर
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में साइबर अपराधों में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है। 2017 में 3,466 मामले, 2018 में 3,353, 2019 में 6,229, 2020 में 10,395, 2021 में 14,007 और 2022 में 17,470 मामले दर्ज किए गए। फरवरी में, तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने लोकसभा को एक लिखित उत्तर में बताया कि 2023 में वित्तीय साइबर धोखाधड़ी की 1,12,82,65 शिकायतें मिली थीं। गृह मंत्रालय की साइबर विंग के मुताबिक, डिजिटल अरेस्ट के जरिये साइबर ठग हर दिन मासूमों से छह करोड़ रुपये लूट रहे हैं। इस साल अक्टूबर तक डिजिटल अरेस्ट के कुल 92,334 मामले सामने आए हैं, जिनमें 2140 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी हुई है। अगर औसत निकाला जाए तो हर माह 214 करोड़ रुपये की साइबर ठगी हुई है। यह एक बेहद छोटा सा आंकड़ा है, जबकि असली नंबर इससे कहीं बहुत ज्यादा है। बहुत सारे लोग तो डर और बदनामी की वजह से सामने ही नहीं आते हैं।
साइबर अरेस्ट की बढ़ती घटनाओं के बीच उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने अंतर्राष्ट्रीय साइबर ठगों का भंडोफोड़ कर 7 ठगो को गिरफ्तार किया है, जिनके तार चीन और पाकिस्तान से जुड़े बताए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इन्होंने चीन और पाकिस्तान के नेवर्क से कंबोडिया में डिजिटल अरेस्ट की ट्रेनिंग लेकर पूरे देश में करोड़ों की ठगी की वारदातों को अंजाम दिया थालखनऊ एसटीएफ ने इन ठगों को वीपीए से ट्रैक किया था। गिरोह का मास्टरमाइंड पंकज सुरेला बताया जा रहा है जो मार्च 2024 में कंबोडिया गया था और यहां पाकिस्तानी साथी के साथ मिलकर चीनी साइबर एक्सपर्ट्स से डिजिटल अरेस्ट का खेल सीखा। मई में पंकज सुरेला भारत लौटा और फिर गिरोह बनाकर डिजिटल अरेस्ट का खेल खेलने लगा।
— अजय कुमार,लखनऊ