कविता

माँ

माँ! चेहरे के भाव पहचानती है।
मांँ! कौन कितना खाएगा जानती है।
माँ! मुस्कुरा सकती है दर्द में भी।
माँ! वक्त आने पर शेरनी बन जाती है।
माँ! की गोद मखमल का एहसास कराती है।
माँ! जिसकी बद्दुआ कभी नहीं लगती।
माँ! दिल से हमेशा ही आशीर्वाद देती है।

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

पता- 15a राधापुरम् गूबा गार्डन कल्याणपुर कानपुर

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