चींटी रानी
कांप रही थी चींटी रानी।
ठंडा मौसम ठंडा पानी।।
दिखे नहीं ये सूरज दादा।
भूल गए क्या कर के वादा।।
कभी ज़रा अंबर को ताके।
सितम किया सर्दी ने आ के।।
चींटी फिर चींटा से बोली।
धीरे से अपना मुँह खोली।।
स्वेटर टोपी नहीं रजाई।
सर सर चलती है पुरवाई।।
होती है मुझको कठिनाई।
सर्दी का मौसम दुखदाई।।
चींटा को भी फ़िक्र सताई।
तब उसने तरकीब लगाई।।
पत्ती से कनटोप बनाया।
अपनी चींटी को पहनाया।।
देख चेहरा वह शरमाई।
चींटा को फिर गले लगाई।।
लगी नाचने चींटी रानी।
सुनो सुनाए “प्रियू” कहानी।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”