सुनो शिक्षको
सुनो शिक्षको
ध्यान से सुनो
बच्चों के पास जाने से पहले
फेफड़ों से निकाल फेकों
ठहरा धुंआ और बासी हवा
और बहा दो किसी नदी में
मन के पूर्वग्रही खपरैल की राख।
उनसे बातें करो
उनके परिवेश की, गांव की
मेले की ओर बहते
कुलांचे भरते पांव की।
उनसे प्यार करो
जैसे माटी करती है दूब से
और हरीतिमा करती धूप से
बिछाकर आत्मीयता, धैर्य
और मधुरता की श्वेत चादर
उगा लो नवल सर्जना के
नन्हे-नन्हे सूरज।
तुम भी चलो उनके साथ-साथ
गिरते-उठते, दौड़ते
हंसते, गाते, गुनगुनाते
उनके अनुभवों के गारे से
जोड़कर अपने अनुभवों की ईंट
करो नया निर्माण।
बच्चों का सीखना है तभी सार्थक
जब काम पूरा हो जाने पर
बच्चों के चेहरों पर खिल उठे
सुबह की मखमली धूप।
— प्रमोद दीक्षित मलय