लहरों जैसा है जीवन
शांता का पूरा जीवन सीधी रेखाएं खीचकर कलाकृतियाँ बनाते हुए बीत गया। वेंटिलेटर पर अंतिम सांसें लेते हुए उसे एक के बाद एक अपनी कला प्रदर्शनियां व उनमे मिले पुरुस्कार व सम्मान याद आ रहे थे।
उसे याद आ रहा था कि उसके शानू ने कहा था,”शांता जीवन तो आड़ी तिरछी रेखाओं से ही बनता है –सीधी रेखाएं तो जीवन अंत की ओर ही इशारा करती हैं। ”
उसे यह भी याद करके दुःख हो रहा था कि उसने बिटिया उम्मीद को एक भी सीधी रेखा खींच न पाने के लिए क्यों मारा था ?
आज उसने उम्मीद को पुकारने की कोशिश भी की,ताकि वह सामने के ‘ ई सी जी ‘ मोनिटर पर आने लगी इन सीधी रेखाओं को आड़ी तिरछी रेखाओं में बदल दे। पर काश उम्मीद ऐसा कर पाती ! **
— विष्णु सक्सेना