गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

नफे – नुकसान का बंधन नहीं था
ये दिल व्यापार का आंगन नहीं था

बिका करता था यों तो कौड़ियों में
मगर निर्लज्ज विज्ञापन नहीं था

मोहब्बत की निभाई खूब रस्में
दिलों में किन्तु अपनापन नहीं था

फिरे आवारगी में हम हमेशा
हमारे पास घर – आंगन नहीं था

ये बचपन भीग जाता था अभी तक
के ऐसा शुष्क तो सावन नहीं था

उजड़ते जा रहे जंगल के जंगल
कमाई का ये संसाधन नहीं था

जरा – सी बारिशों में डूब जाती
धरा पर ऐसा जलप्लावन नहीं था

मनोमालिन्य दिखता है सतह पर
मलिन इतना तो पहले मन नहीं था

धड़कता था वो सबके ही दिलों में
किसी भी एक की धड़कन नहीं था

अजाने द्वीप पर जैसे खड़े हैं
कभी इतना अकेलापन नहीं था

थे ओछे लोग कुछ दुनिया में पहले
मगर इतना भी ओछापन नहीं था

— ओम निश्चल

Leave a Reply