जय संविधान
जाने दो उसे जो पीछे जाना चाहता है,
शुद्ध जल की जगह गरल पीना चाहता है,
तमाम मुश्किलों से लड़ चुके हैं,
बहुत आगे की ओर बढ़ चुके हैं,
चूमने दो जो धर्म के कदम चूमना चाहता है,
खुले गगन से ऊब कुएं में डूबना चाहता है,
मस्तिष्क को गिरवी रख नशे में झूमना चाहता है,
बिना पानी नदी में डूबना चाहता है,
माथे से लगाने के लिए हमारा संविधान है,
हमारे हर कर्म का सम्पूर्ण विधान है,
इसने हमें बंधुत्व और समता दिया है,
मां की तरह ममता दिया है,
यह हमें कभी नहीं बहकाता है,
हर कदम हमारा तरक्की की ओर बढ़ाता है,
न कहीं ऊंच नीच न कोई भेदभाव,
हर नागरिक से रखता सम लगाव,
साथ हुए भेदभाव पर देता न्याय की ग्यारंटी,
है सजा सबके लिए सम,हो बाबा या बंटी,
तो साथियों यह तय आप और करना है,
किसे छोड़ना और किसे पकड़ना है,
न पाखंड न अंधविश्वास
पूर्ण है विधि और विधान,
तो एक साथ सारे बोलो
जय संविधान,जय संविधान,जय संविधान।
— राजेन्द्र लाहिरी