हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – मोबाइल के बच्चे !

सुबह हो गई है।मोबाइल जाग गए हैं।रात में जो स्वप्न आ रहे थे,वे सब भाग गए हैं।रसोइयों में बर्तनों की खटपट नहीं सुनाई पड़ रही है।पत्नी पति से नई साड़ी के लिए लड़ रही है। उसे कल अपने भैया की शादी में जाना है।यद्यपि कार्डिगन को अटैची में ही सजाना है,उपस्थित जनियों को मात्र दिखलाना है।इसलिए उसे अनिवार्यतः लाना है। यद्यपि साड़ियों से अलमारी अटी पड़ी है, पर वही पुराना सूत्र दुहराना है कि मेरे पास तो साड़ी ही नहीं है ,मैं कैसे जाऊँ। वहाँ जो ठिठुराती हुई ठंड में खुली नंगी पीठ और स्लीवलैस ब्लाउज में निज यौवन चमकाना है।

सब जागे तो मोबाइल भी जाग गए। वे सोए ही कब थे।किसी पर सुबह वेला के भजन बज रहे हैं तो किसी पर गुड मॉर्निंग और सुप्रभात के मैसेज सचित्र सज रहे हैं।यद्यपि करनी से बहुत दूर है ,पर क्या करे आदमी दूसरों को ज्ञानोपदेश देने के लिए मजबूर है।इसलिए नित्य प्रति भोर वेला में ही जबरन दिए जा रहा है।भले ही उसे कोई ले या न ले। देखते ही डिलीट कर दे और मोबाइल को कचरे का डिब्बा बनने से क्लीन कर ले।कविगण कविता लिखने में मगन हैं।उन्हें नित्य प्रति काव्य लेखन की लगन है। कोई कोई अपना वीडियो बना रहा है और अपना सुंदर सा मुख बिंब सजा रहा है।बच्चे भी कहीं किसी से क्या कम हैं , वे भी बिस्तर में पड़े -पड़े पी रहे मोबाइली रम हैं।युवा युवती सब नशे में चूर हैं। वे कब समझती हैं वे कम नहीं वे भी धरती की हूर हैं। उनका मन अनेक अदाओं में रीयल की रील में जमता है।कभी नृत्य तो कभी गायन से खूब फबता है।मोबाइल को पल भर का चैन नहीं है।

मोबाइल बहुआयामी है। बहुमुखी है।आज का आदमी मोबाइल से सुखी है। मुझे तो यही लगता है कि मोबाइल सौ दवाओं की एक दवा है। इसके समक्ष तो ‘अतिथि देवो भव’ भी हवा है। कोई किसी के घर आया है, उसे दुआ सलाम भी भारी है,उसने अभी उसे एक गिलास पानी तक नहीं पिलाया है । पत्नी- बच्चे बड़े सब अपने -अपने मोबाइल में मगन हैं। सभी की इसी दिशा में भयंकर लगन है।लगता है जैसे घर में कोई है ही नहीं। सन्नाटा पसरा है। न बच्चों की चहल- पहल न कहीं महकता हुआ गजरा है।जब कोई उसे कुछ नहीं पूछता है तो क्या करे बेचारा वह बिना चाय-चारा या भाई चारे के ही पलायन कर जाता है और पूरा घर भर यह सोचता रह जाता है कि किसलिए आए थे और किसलिए चले गए? तुम्हारी ऐसी -तैसी के लिए आए थे ,वह कर दी और विदा हो लिए। जब कोई बोलेगा बतलाएगा ,आवभगत करेगा ;तभी तो कोई तुम्हारे घर में चरण धरेगा !

हाथ -हाथ को एक- एक खिलौना है। वह जैसे कोई फोन नहीं ;अपना ही छौना है।जिसे दुलाराना है, पुचकारना है,सँवारना है।शेष सबको दुत्कारना है।सब मोबाइल में आकंठ डूबे हैं। विडियोबाजी,फोटोबाजी,रीलबाजी, गीत, मनोरंजन, फेशबुकबाजी,व्हाट्सएपबाजी, इंस्टाग्रामबाजी ,ऐयाशी,जुआ, सट्टा, खेल, बैंक, कैलकुलेटर,टीवी, समाचार, कम्प्यूटर क्या कुछ नहीं है मोबाइल पर ;जो सुबह जागते ही उसे अपने आलिंगन में न ले ले।कर लो दुनिया मुट्ठी में ; लो हो गई दुनिया एक चुटकी में। अकेले अकेले बतलाओ या मत बतलाओ। रात दिन चौबीसों घण्टे इसी से अपने को बहलाओ,रिझाओ,अपने ही अपने में खो जाओ। सारी दुनिया जहान को बिसराओ।घरनी और बच्चों को झूठ बोलना सिखलाओ। पापा घर पर नहीं हैं। जबकि वे मुँह ढँके हुए पड़े रजाई में यहीं कहीं हैं।दुनिया मोबाइल की दीवानी है। किस- किस की कहें घर- घर की यही कहानी है।जैसे मोबाइल कोई पाला हो जो एक ओर से दूसरे छोर तक मार गया है।

लालाजी की दुकान छूटे न छूटे ;पर किसान की हल की मुठिया छूट गई। घरनी की गृहस्थी की रौनक लुट गई। स्कूल कालेज के बच्चों की पढ़ाई विदा हो गई। रही बची वह ऑन लाइन क्लास ने पूरी कर दी।गिल्ली डंडा ,कबड्डी,क्रिकेट, ताश, इक्का ,बादशाह,बेगम ,गुलाम नदारद हो गए।टीवी को टीबी नहीं कैंसर हो गया।रेडियो,ट्रांजिस्टर,टेप रिकॉर्डर, कैलकुलेटर,जाने कहाँ चले गए। इस एक ने इन सबको ही मार डाला।यह विज्ञान का कोई उज्ज्वल युग है या है अध्याय काला।कुएँ में जब भाँग पड़ जाए तो यही होता है ;गीत गाए तो गीत ही गाता रहे ,रोए तो रोता ही रहे।सोए तो सोता रहे और नदी में उतर जाए तो गोता ही लगाता रहे।

ऐसा नहीं है कि विज्ञान के आगे बढ़ते हुए चरण रुक जाएँ। विज्ञान न रुकना जानता है और न झुकना। वह बस निरन्तर चलना ,चलना और चलना जानता है। जब चलेगा तो नई -नई मंजिलें हासिल करेगा। इसलिए ये न समझें कि बस मोबाइल में ही सिमट जाना है। अभी तो देखते जाइए आगे -आगे क्या होना जाना है ! आदमी ने भी कब कहीं रुकना थमना ठाना है। जो रहेंगे ;वे आगे आने वाले मोबाइल के बच्चों से हिलेंगें -मिलेंगे।बस देखते जाइए। हममें से कितने भाग्यशाली होंगे जो वह मोबाइल के बच्चों से खेलेंगे।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040

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