इतना है मुझे विश्वास
सर्द मौसम में खबर भी हुआ सर्द,
तकलीफ में संतान और पिता को पहुंचा दर्द,
हूं जुड़ा इस कदर अलग कर नहीं पाता,
प्रकृति के खेल को कैसे कहूं विधाता,
हर छोटे गम में जब भी संतान पड़ा,
दूर हो या पास पिता साथ है खड़ा,
कुछ मुश्किलें अचानक जिंदगी में है आती,
निबटना होगा कैसे समय हमें सिखाती,
गम,दुख,खुशी के जाल से हम सब बंधे हुए हैं,
हालातों के डोर से हरपल सधे हुए हैं,
बांटने के खातिर कुछ दर्द मैं भी ले लूं,
मीठे बोल चार कहके थोड़ी खुशी मैं दे दूं,
हौसला तू रखना है हौसला ही सब कुछ,
हौसले के आगे हार जाते हैं हर दुख,
हर बुरे वक्त को एक दिन गुजर है जाना,
खराब है हालात तो उसे सुधर है जाना,
क्रोध,क्षोभ,दुख को न आने देना पास,
मन रखोगे मजबूत इतना है मुझे विश्वास।
— राजेन्द्र लाहिरी