चुनावी व्यंग्य
एक टिकट मुझे भी दिलवा दो
आदर्शों से कोई लेना देना नहीं
किसी भी दल से दिलवा दो
जो दल देगा उसका गुणगान करूंगा
निष्कलंक हूं
कोई दाग नहीं
जातिगत बहुमत नहीं
जमीर जिंदा है
अभी मरा नहीं
यह सब अवगुण हैं मुझमें
देश सेवा की अति उत्कृष्ट इच्छा मन में
सोच रहा लड़ जाऊं चुनाव किसी दल से
इस देश सेवा के बहाने
पीढ़ियों का बंदोबस्त कर जाऊं
दिलवा दो भाई मुझे भी
किसी पार्टी से टिकट
बसपा हो चाहे हो सपा
कांग्रेस हो फिर हो भाजपा
नहीं गुरेज मुझे किसी से
मिल जाये बस एक चुनाव टिकट
चाहे दे दे कोई भी दल
लोग तरे न तरे
मैं तार दूं इसी बहाने अपने कुल को