कविता

कविता

छोड़ गया था मुझको जो
फिर मुझको बुलाता क्यों है

जिसको जाना ही है
फिर लौट के आता क्यों है

वो रहता है हर पल उदास
फिर अपनी तस्वीरों में इतना मुस्कुराता क्यूं है

वाकिफ हूं उसके फरेब से
फिर भी उसका झूठ मुझको लुभाता क्यूं है

वैसे तो मिलता मुझसे बड़े अपनेपन से
महफिल में मुझको गैर जताता क्यों है

मरहम की जिसको जरूरत नहीं
वो अपने ज़ख्म दिखाता क्यों है

जिसका मिलना नही होता है मुक्कदर में
वही आंखो को सिकंदर सा भाता क्यूं है

— प्रज्ञा पांडेय मनु

प्रज्ञा पांडे

वापी़, गुजरात

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