छद्म (लघुकथा)
शहर के नेता नरेश भान ने शाम को अपने दोनों बेटों को बुलाकर कहा-” कल के बंद की अगुवाई करने का जिम्मा संगठन ने मुझे सौंपा है। कल हम सुबह 11:00 बजे चौक से इकट्ठे होकर जुलूस का आयोजन करेंगे और फिर जुलूस शहर की गलियों से गुजरता हुआ डी सी कार्यालय में मांग पत्र के साथ संपन्न होगा।”
इसके बीच भीड़ उग्र हो गई तो..?युवा बेटे ने कहा । “तब वहीं जुलूस खत्म समझो। गिरफ्तारियां होंगी हम नेता हैं और हम गिरफ्तार हो जाएंगे। नेता ने मुस्कुरा कर जवाब दिया ।
परंतु आप दोनों इस शहर में नहीं रहेंगे । आप दोनों कल दूसरे शहर चले जाएंगे। कल को आपका करियर भी तो देखना है। कहीं अरेस्ट-वेस्ट हो गए तो दिक्कत हो जाती है। हर जगह करेक्टर प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ती है । अच्छे करियर के लिए पुलिस में कोई केस नहीं होना चाहिए।” दोनों बेटे अपने पिता की बात मानकर दूसरे शहर चले गए ।
दूसरे दिन सुबह जुलूस निकला। नेताजी के साथ जुलूस वाली शाम तक कई युवा गिरफ्तार हो गए थे । उनमें बहुत से युवा पढ़े-लिखे डिग्री धारक थे । सैंकड़ों युवाओं के साथ गिरफ्तार नेताजी का जोश देखते ही बन रहा था । वह युवाओं से अपने हक के लिए मर मिटने का आह्वान कर रहे थे …। मानो उनका यह आह्वान अपने बेटों के भविष्य के लिए ही हो…।
— अशोक दर्द