आखिर किसकी
जिंदगी की हरेक कमीयों को,
दूर करने की हिम्मत कहां है किसी को,
बस बेरूख़ी ही दिखाई देती है,
सबमें यहां पर।
हमें आनन्द और संतुष्टि देने वाली ताकत बनकर,
खड़ा होकर सलामी देने की कोशिश करनी चाहिए,
आखिर किसकी बद्दुआओं से,
हम डर रहे हैं यहां पर।
नज़रों से देखा जाए तो,
लगता है कि यही आखिरी नस्ल है।
इसकी वजह से ही खत्म हो रहा है संस्कार,
कहां कोई मजबूती से,
लड़ने की कोशिश करता है यहां,
यही हकीकत है हम-सब की क्या अक्ल है।
कौन है जो बिल्कुल यथार्थ को,
सामने लाकर खड़ा हो जाता है।
बस मीठी-मीठी बातें करने में ही,
अपनी अपनी अक्ल लगाता है।
इस सियासत में थोड़ी सी हंसी,
थोड़ी सी खुशी,
थोड़ी सी गुदगुदी,
थोड़ी सी मुस्कान ,
इसकी वजह से ही हिम्मत जुटाई जाती है,
हम मानते हैं,
अपने पराए का इस कारण से अहसान।
इस दुनिया में सत्य की गाड़ी,
काफी तनाव देती है।
हरेक स्टेशन पर पहुंचने की जरूरत नहीं है,
बस बेरूख़ी ही सही वजह की,
आन-बान और शान होती है।
कष्ट के स्टेशन पर पहुंचने पर,
सही अहसास होता है।
पता नही चलता है यक़ीनन कुछ यहां,
बस मन बड़ा परेशान दिखता है।
बदले हुए लोगों को खोजने की कोशिश बेकार है,
ख़ोज तो उसकी की जाती है जो,
गुमशुदा है,
हकीकत में बिछड़ गए हैं,
घर-परिवार से रूबरू कराने वाले लोगों से दूर रहने की,
क़सम खा चुके हैं।
आखिर क्यों दूरियां बनाकर,
रह रहे हैं। हमें आगे बढ़ना होगा,
सुकून देने वाली ताकत बनकर,
खड़ा होकर रहना होगा।
— डॉ. अशोक, पटना