गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खड़े हैं राह में दुश्मन, हृदय है मातु का घायल।
देश की यादें सतातीं, प्रिया है प्रेम में पागल।

उड़ता जाता मन – पंछी, चाहत करने वह पूरी।
पूरी हों नहीं चाहतें, होती है मन में हलचल।।

बने रहना सजग प्रहरी, रहे हर जन सुरक्षित ही।
कभी न हो यहाँ पर युद्ध, बने न धरती यह मरुथल।

सब ही फसलें लहराएँ, होती हरी – भरी जाएँ।
सभी का हो भरा मन ही, सुनहरा देश का हो कल।।

रहे ईमानदारी ही, सदा संतुष्ट आत्मा हो।
चाल किसी की कोई भी, हो न सके कभी भी सफल ।।

साध कर लक्ष्य बढ आगे, पानी हमको है मंजिल।
बिछे हों राह में काँटे, पीना मत कभी तुम गरल।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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