पश्चाताप
कभी जो शब्द बोला था, अब उसे समझता हूँ,
अपने मुख से निकले अक्षरों पर पछतावा पाता हूँ।
जो शब्द निकले थे मेरे दिल से, तीखे और कठोर,
अब उन शब्दों के दर्द को, मैं महसूस करता हूँ ।
हर कदम जो गलत शब्दों की दिशा में बढ़ा था मेरा,
वह घातक रास्ता आज मुझे सही नजर आता नहीं।
वो जो क्षणिक आनंद था, अब दुःख बनकर आया,
पश्चाताप की गहरी खाई में मुझे अंदर तक समाया है।
अधिकार के मोह में, भटके थे कई सारे मेरे शब्द,
अब सोचता हूँ, पछताता हूँ हर एक घड़ी दर घड़ी।
मन के अंधकार में खो गया था मैं उस जहाँ में,
सच से दूर, स्वार्थ की राह पर दूर चल पड़ा था मैं।
अब सीख चुका हूँ, मैं कि जो किया वो गलत था,
जो नहीं किया था, वही मेरे जीवन का यथार्थ था।
जो खो चुका हूँ, उसे वापस नहीं पा सकता कोई मेरा,
जब जागा हूँ, तो आत्मा में पश्चाताप से दिल जलता है।
अब बस एक उम्मीद है, अपने शब्दों की सुधार का,
पश्चाताप में शक्ति होती है, सच्चाई के रास्ते की ओर।
हर गलतियों से कुछ तो सिखना चाहिए मनुष्यों को,
तभी आत्मा को सुकून मिलता है अपनी पश्चाताप पर।
वक्त की राह में, हमसे होती है अनगिनत अनजाने भूलें,
जब दिल में दर्द होता है,तो आत्मा की आवाज़ सुनाई देती।
अब मैं कोशिश करता हूँ की, सच्चाई की राह पकड़ने की,
जो गलती किया था मैंने,उसे सुधारने की कोशिश करता हू।
पश्चाताप की धारा में, हमें मिलती है शांति,और सही मार्ग,
चलने की नयी शुरुआत सच का मार्ग कभी कठिन होता।
लेकिन पछताए बिना हम कुछ नहीं समझ सकते हर गलती से सिखना,
यही जीवन का संदेश है, पश्चाताप से ही मिलती है आत्मा की ताजगी।
— रूपेश कुमार