ग़ज़ल
भ्रम में डालेगा मन को उकसाएगा
लालच जब जागेगा पाप कराएगा
जो भी अपनी हद के बाहर जाएगा
अनचाही पीड़ा की जद में आएगा
भेद नही है विधि की न्याय व्यवस्था में
जिसकी जैसी करनी है फल पाएगा
मौत सुनिश्चित और अनिश्चित है जीवन
बंदे इस सच से कब आँख मिलाएगा
आज नही समझी कीमत तुमने तो कल
वक्त तुम्हें अपनी कीमत समझाएगा
रक्खेगा जो लड़ने का जज़्बा कायम
हर मुश्किल को आख़िरकार हराएगा
सत्य शरण में आजा वक्त रहे बंसल
वरना तो बस रोएगा पछताएगा
— सतीश बंसल